फैज़िया के वालिद का 3 साल पहले ही इंतकाल हो गया था, मां को कैंसर से मुतास्सिर है जिसकी जांच बार-बार करानी पड़ती है.
नई दिल्ली/शोएब रज़ा: काबिलियत पैसों की मोहताज नहीं होती, उसे बस मौके का इंतज़ार रहता है. दिल्ली के सीलमपुर इलाके की एक झुग्गी में रहने वाली फैज़िया ने इस बात को साबित किया है. फैज़िया ने कुछ दिन पहले सीबीएसई की बारहवी क्लास में 96 फीसद नम्बर हासिल किए लेकिन मुफलिसी से घिरी फैज़िया के सामने बड़ी चुनौती अब आगे की पढ़ाई के लिए खड़ी हो गई है, क्योंकि आगे की पढ़ाई के लिए उसके पास पैसा नहीं है।
फैज़िया के वालिद का 3 साल पहले ही इंतकाल हो गया था, मां को कैंसर से मुतास्सिर है जिसकी जांच बार-बार करानी पड़ती है. सीलमपुर की झुग्गियों में रहने वाली फैज़िया का एक भाई और चार बहनें हैं, भाई मजदूरी करता है, यानि कोई भी ऐसा सहारा नहीं जहां से फैज़िया की तालीम के पैसों का खर्च उठ जाए.
12 वीं क्लास में शानदार कारकरदगी का मुज़ाहिरा करने वाली फैज़िया बताती हैं कि उसने अपने इर्द गिर्द तालीम का माहौल ना होने के बावजूद पढ़ाई की अहमियत को अच्छे से समझा है. फैज़िया ने बताया कि उसने इलाके के सरकारी स्कूल से पढ़ाई की हालांकि इतने अच्छे नम्बर लाने के बावजूद कोई उसका हौसला बढ़ाने तक नहीं आया. स्कूल इंतिजामिया ने भी कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई. फैज़िया पीएचडी करके प्रोफेसर बनना चाहती है लेकिन ये सब कैसा होगा, वो नहीं जानती, ना पैसा है, ना कोई दूसरा सहारा
जब बारहवीं के इम्तिहानात की तैयारियों में फैज़िया जुटी थी तब एक समाजी तंजीम आशा सोसाइटी ने फौज़िया की मदद की थी, इस तंजीम से जुड़े शिव कुमार कहते हैं कि फैज़िया बेहद मेहनती और होशियार लड़की है, उसे बस मौके की ज़रूरत हैं, हुकूमत और जिम्मेदार लोगों को फ़ैजिया जैसी बच्चियों के बारे ज़रूर सोचना चाहिए.
फैज़िया ने अपनी मेहनत से ये तो साबित कर दिया कि वो काबिल हैं लेकिन मुफलिसी उसके रास्ते में ना आए और उसकी पढ़ाई अधूरी ना रहे, इसकी जिम्मेदारी हुकूमती सतह पर तय होनी चाहिए ताकि फैज़िया जैसी बेटियां आगे बढ़ सकें और अपने ख्वाबों को हकीकत में तब्दील करें.
Source: Zee News
फैज़िया के वालिद का 3 साल पहले ही इंतकाल हो गया था, मां को कैंसर से मुतास्सिर है जिसकी जांच बार-बार करानी पड़ती है. सीलमपुर की झुग्गियों में रहने वाली फैज़िया का एक भाई और चार बहनें हैं, भाई मजदूरी करता है, यानि कोई भी ऐसा सहारा नहीं जहां से फैज़िया की तालीम के पैसों का खर्च उठ जाए.
12 वीं क्लास में शानदार कारकरदगी का मुज़ाहिरा करने वाली फैज़िया बताती हैं कि उसने अपने इर्द गिर्द तालीम का माहौल ना होने के बावजूद पढ़ाई की अहमियत को अच्छे से समझा है. फैज़िया ने बताया कि उसने इलाके के सरकारी स्कूल से पढ़ाई की हालांकि इतने अच्छे नम्बर लाने के बावजूद कोई उसका हौसला बढ़ाने तक नहीं आया. स्कूल इंतिजामिया ने भी कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई. फैज़िया पीएचडी करके प्रोफेसर बनना चाहती है लेकिन ये सब कैसा होगा, वो नहीं जानती, ना पैसा है, ना कोई दूसरा सहारा
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जब बारहवीं के इम्तिहानात की तैयारियों में फैज़िया जुटी थी तब एक समाजी तंजीम आशा सोसाइटी ने फौज़िया की मदद की थी, इस तंजीम से जुड़े शिव कुमार कहते हैं कि फैज़िया बेहद मेहनती और होशियार लड़की है, उसे बस मौके की ज़रूरत हैं, हुकूमत और जिम्मेदार लोगों को फ़ैजिया जैसी बच्चियों के बारे ज़रूर सोचना चाहिए.
फैज़िया ने अपनी मेहनत से ये तो साबित कर दिया कि वो काबिल हैं लेकिन मुफलिसी उसके रास्ते में ना आए और उसकी पढ़ाई अधूरी ना रहे, इसकी जिम्मेदारी हुकूमती सतह पर तय होनी चाहिए ताकि फैज़िया जैसी बेटियां आगे बढ़ सकें और अपने ख्वाबों को हकीकत में तब्दील करें.
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