कोरोना के कारण तीन माह से बनारसी वस्त्र कारोबार बेपटरी है। ऐसे में बुनकर सब्जी और किराने की छोटी दुकानों के सहारे जिंदगी की मुश्किलों को तौल रहे हैं।
वाराणसी। कोरोना के कारण तीन माह से बनारसी वस्त्र कारोबार बेपटरी है। बुनकर टूटने लगे हैं। हुनरमंद हाथों में तराजू व बटखरे हैं। वे सब्जी और किराने की छोटी दुकानों के सहारे जिंदगी की मुश्किलों को तौल रहे हैं। गलियों और मोहल्लों में करघे शांत तो पावरलूम बंद हैं। जिससे जिंदगी का ताना-बाना बिगड़ गया है। बुनाई कर खूबसूरत साड़ी तैयार करने वाले हाथ काम को तरस गए हैं। प्रत्यक्ष व परोक्ष बनारस व पूर्वांचल के करीब साढ़े चार लाख बुनकर परिवारों को पालने वाला बनारसी वस्त्र कारोबार ठप है। बुनकरों की जमा-पूंजी खत्म हो चुकी है तो मदद करने वाले हाथ अब थक गए हैं। इस कठिन दौर में कोई पावरलूम तो गहने बेचकर पेट पाल रहा। कइयों ने छोटी दुकान खोल ली हैं।
21 लोगों का कुनबा, एक दुकान
फुजैल अहमद का दस भाइयों सहित 21 सदस्यीय परिवार है। घर में तीन पावरलूम सभी मिलकर चलाते थे। दो भाई पढ़ाई कर रहे हैं। लॉकडाउन में काम बंद हो गया। जमा पूंजी से गृहस्थी खींचते रहे। काम शुरू होने की सूरत न बनती देख घर में जनरल स्टोर खोल लिया। रोज 80-100 रुपये की कमाई से घर चलाने की कोशिश कर रहे।
फल की दुकान बनी सहारा
सरैंया निवासी युवा रोशन शाह ने बचपन में ही पावरलूम का हत्था पकड़ लिया था। 12 सदस्यीय परिवार पालने में पावरलूम चला पिता मो. जमील की मदद करते थे। काम बंद हुआ तो गुजर-बसर के लिए आजकल ठेले पर फल बेच रहे हैं।
घर में है बस रहने का स्थान
छोटे घर में सरैंया निवासी अनीसुर्रहमान का 12 सदस्यीय परिवार किसी तरह रहता है। चार भाइयों सहित वे दूसरों के कारखाने में दिहाड़ी पर पावरलूम चलाते थे। अब घर के आगे सब्जी की दुकान लगा रहे। पहले चारों भाई के साथ मिलकर रोजाना 1000 से 1200 रुपये की कमाई करते थे, सब्जी की दुकान से मिलने वाले 100 से 150 रुपये से ही गृहस्थी की गाड़ी खींच रहे हैं।
नहीं देखी गई बहनों की तड़प
17 वर्ष के मोहम्मद यासीन की अरसा पहले अम्मी गुजर चुकी हैं और पिता रोशन अंसारी भी अमूमन बीमार रहते हैं। यासीन के कंधों पर पिता के साथ चार छोटी बहनों की जिम्मेदारी है। घर में एक पावरलूम है, जो पिता चलाते थे। यासीन दूसरे के यहां दिहाड़ी बुनकर थे। काम छूटा तो बहनों की फिक्र हुई। लिहाजा घर के दरवाजे पर ही ठेला लगाकर आम बेचने लगे।
कारखाना बंद, अब लगा रहे पान
सरैंया के 60 वर्षीय हाजी मोहम्मद यासीन ने कभी ऐसी मुसीबत नहीं देखी थी। उनके कारखाने में तीन पावरलूम हैं, जो छह बेटे दो शिफ्ट में बारी-बारी चलाते थे। काम बंद होने से वे बेरोजगार हो गए। गुजर-बसर को हाजी यासीन ने कारखाने में ही छोटी सी पान की दुकान खोल ली है।.
कारखाने को दुकान में बदला
युवा इरफान अहमद ने कुछ अरसा पहले घर में दो पावरलूम लगाकर खुद का काम शुरू किया था। इच्छा कारखाने में एक और पावरलूम बढ़ाने की थी, मगर कारोबार ठप होने से इरफान ने कारखाने में ही जनरल स्टोर खोल लिया। अब यही सहारा है।
माल उपलब्ध, बाजार ठप
रेशम, जरी सहित कच्चे माल की उपलब्धता है, लेकिन तैयार उत्पाद बेचने के लिए बाजार ही नहीं है। होली, नवरात्र, ईद जैसे प्रमुख त्योहार और लगन का बाजार कुछ इस तरह टूटा कि बुनकरों की रोजी के तार तोड़ डाले। दीपावली तक कारोबार कुछ हद तक पटरी पर लौटने की संभावना जताई जा रही है, मगर बुनकरों का कमजोर तबका इतना इंतजार करने में सक्षम नहीं है। बुनकर बिरादराना तंजीम बाइसी के सरदार हाजी अबुल कलाम का कहना है कि जब तक आवागमन पूरी तरह शुरू नहीं होगा, शादी-ब्याह व सामाजिक आयोजनों से पाबंदी हट नहीं जातीं, तब तक कारोबार पटरी पर आने की संभावना कम ही है।
Source: Dainik Jagran
कोरोना ने तोड़ी बुनकरों की कमर, रोटी पर असर
21 लोगों का कुनबा, एक दुकान
फुजैल अहमद का दस भाइयों सहित 21 सदस्यीय परिवार है। घर में तीन पावरलूम सभी मिलकर चलाते थे। दो भाई पढ़ाई कर रहे हैं। लॉकडाउन में काम बंद हो गया। जमा पूंजी से गृहस्थी खींचते रहे। काम शुरू होने की सूरत न बनती देख घर में जनरल स्टोर खोल लिया। रोज 80-100 रुपये की कमाई से घर चलाने की कोशिश कर रहे।
फल की दुकान बनी सहारा
सरैंया निवासी युवा रोशन शाह ने बचपन में ही पावरलूम का हत्था पकड़ लिया था। 12 सदस्यीय परिवार पालने में पावरलूम चला पिता मो. जमील की मदद करते थे। काम बंद हुआ तो गुजर-बसर के लिए आजकल ठेले पर फल बेच रहे हैं।
घर में है बस रहने का स्थान
छोटे घर में सरैंया निवासी अनीसुर्रहमान का 12 सदस्यीय परिवार किसी तरह रहता है। चार भाइयों सहित वे दूसरों के कारखाने में दिहाड़ी पर पावरलूम चलाते थे। अब घर के आगे सब्जी की दुकान लगा रहे। पहले चारों भाई के साथ मिलकर रोजाना 1000 से 1200 रुपये की कमाई करते थे, सब्जी की दुकान से मिलने वाले 100 से 150 रुपये से ही गृहस्थी की गाड़ी खींच रहे हैं।
Out of Work, Weavers of Famed Banarasi Silk Sarees Forced to Push Kids into Child Labour
नहीं देखी गई बहनों की तड़प
17 वर्ष के मोहम्मद यासीन की अरसा पहले अम्मी गुजर चुकी हैं और पिता रोशन अंसारी भी अमूमन बीमार रहते हैं। यासीन के कंधों पर पिता के साथ चार छोटी बहनों की जिम्मेदारी है। घर में एक पावरलूम है, जो पिता चलाते थे। यासीन दूसरे के यहां दिहाड़ी बुनकर थे। काम छूटा तो बहनों की फिक्र हुई। लिहाजा घर के दरवाजे पर ही ठेला लगाकर आम बेचने लगे।
कारखाना बंद, अब लगा रहे पान
सरैंया के 60 वर्षीय हाजी मोहम्मद यासीन ने कभी ऐसी मुसीबत नहीं देखी थी। उनके कारखाने में तीन पावरलूम हैं, जो छह बेटे दो शिफ्ट में बारी-बारी चलाते थे। काम बंद होने से वे बेरोजगार हो गए। गुजर-बसर को हाजी यासीन ने कारखाने में ही छोटी सी पान की दुकान खोल ली है।.
मुसलमानों में भी होती हैं जातियां, ऐसा होता है कास्ट सिस्टम!
कारखाने को दुकान में बदला
युवा इरफान अहमद ने कुछ अरसा पहले घर में दो पावरलूम लगाकर खुद का काम शुरू किया था। इच्छा कारखाने में एक और पावरलूम बढ़ाने की थी, मगर कारोबार ठप होने से इरफान ने कारखाने में ही जनरल स्टोर खोल लिया। अब यही सहारा है।
यूपी के वोट बैंक: मुसलमानों को महज 'वोट बैंक' बनाकर किसने ठगा ?
माल उपलब्ध, बाजार ठप
रेशम, जरी सहित कच्चे माल की उपलब्धता है, लेकिन तैयार उत्पाद बेचने के लिए बाजार ही नहीं है। होली, नवरात्र, ईद जैसे प्रमुख त्योहार और लगन का बाजार कुछ इस तरह टूटा कि बुनकरों की रोजी के तार तोड़ डाले। दीपावली तक कारोबार कुछ हद तक पटरी पर लौटने की संभावना जताई जा रही है, मगर बुनकरों का कमजोर तबका इतना इंतजार करने में सक्षम नहीं है। बुनकर बिरादराना तंजीम बाइसी के सरदार हाजी अबुल कलाम का कहना है कि जब तक आवागमन पूरी तरह शुरू नहीं होगा, शादी-ब्याह व सामाजिक आयोजनों से पाबंदी हट नहीं जातीं, तब तक कारोबार पटरी पर आने की संभावना कम ही है।
Source: Dainik Jagran
COMMENTS